*सुदामा जी के प्रेरक वैराग्य उपदेश*
सुदामा जी के प्रेरक वैराग्य उपदेश
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फरीदाबाद, 15 अक्टूबर 2025, सेक्टर 37 के मंदिर के पुजारी श्री सुदामा जी ने जीवन की क्षण-भंगुरता और वैराग्य दर्शन पर विस्तार से प्रकाश डाला। शोक सभाओं की उपयोगिता भी आपने इसी बात में निहित बताई कि हम शरीर की नश्वरता को आत्मसात करें और इस संसार से विरक्त रहने की कला सीख लें।
सुदामा जी के उपदेश कुछ काव्य पंक्तियों पर आधारित थे, जिसका अभिप्राय यही था कि एक दिन सबको इस संसार से चले जाना है । इस सत्य को आत्मसात करते हुए जीवन को सुंदर बनाने का प्रयास सभी को करना चाहिए । आपने बताया कि शरीर को ही वैतरणी मानते हुए जो लोभ, मोह और दुष्कर्मों से दूर हो जाता है अर्थात जिनका जीवन सद्वृत्तियों की ओर मुड़ जाता है; वह वैतरणी पार कर जाता है ।अपने कार्यों से ही व्यक्ति वैतरणी पार कर सकता है। अच्छे कार्य ही धर्म है। धर्म को पैसों से नहीं खरीदा जा सकता । आपने बताया कि यह तो मन को निष्काम भाव में ले जाकर ही संभव है । धर्म का अर्थ पूजा पाठ या औपचारिकताएं नहीं होतीं। यह मनुष्यता के भाव का विस्तार होता है। जहां जिस चीज की कमी महसूस हो, हम उसे पूरा कर दें; बस यही धर्म है। संसार में सब प्रकार के अभावों को भर देना ही धर्म है।
बीच-बीच में आप कथाओं के माध्यम से भी धर्म का सार श्रोताओं को बताते रहे । एक कहानी में आपने बताया कि एक प्यासा व्यक्ति किसी के दरवाजे पर पहुंचा। पानी मांगा, तो धनाढ्य व्यक्ति ने कहा कि रुको बैठो, कोई आदमी आ जाए तो तुम्हें पानी पिलवा दूंगा । कुछ मिनट बाद फिर प्यासे ने पानी मांगा। धनाढ्य ने फिर उत्तर दिया कि कोई आदमी आ जाए तो पानी पिलवा दूंगा। इस बार प्यासे ने तनिक क्रुद्ध होकर कहा कि भाई साहब ! थोड़ी देर के लिए आप ही आदमी बन जाइए! उपरोक्त कहानी के उपदेश को इंगित करते हुए सुदामा जी ने बताया कि संसार की समस्याओं को सुलझाने के लिए हर व्यक्ति को आदमी बनने की आवश्यकता है। इंसान बनने की जरूरत है और उसके हृदय में मनुष्यता का भाव जागृत होना जरूरी है। हर मनुष्य को जीवन छोटा मिला है। उसका सदुपयोग करते हुए समस्त समाज के हृदय में खुशी भरने के लिए हमें सदैव प्रयत्नशील होना चाहिए। श्री सुदामा जी के उपदेशों का यही सार था।
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लेखक:रवि प्रकाश
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