तब मेरी कोई मजबूरी ही होगी
ऐसा नहीं कि,
मुझमें नहीं है ताकत,
या कमजोर हूँ मैं,
या फिर मुफ़लिस हूँ मैं,
या अकेला हूँ मैं,
और मेरा साथ देने वाला,
नहीं है कोई भी।
ऐसा भी नहीं कि,
बिल्कुल अनपढ़ अनभिज्ञ हूँ मैं,
कि नहीं जानता मैं कोई नीति,
कि मालूम नहीं है मुझे कोई विधि,
या डरता हूँ मैं मौत से,
या फिर मैं नहीं कर सकता,
किसी से कोई मुकाबला।
हाँ, यह जरूर है कि,
मैं नहीं चाहता कि,
मुझसे पहुंचे किसी को ठेस,
किसी के जज्बाते-दिल को चोट।
मैं नहीं चाहता कि
मेरे हाथों से हो कोई पाप,
और लगे दाग मेरी जिंदगी पर,
किसी के खूं और बर्बादी का।
मैं नहीं चाहता कि,
मेरी वजह से बुझे दीपक,
किसी के घर का,
और मेरे कर्मों से हो बेघर,
कोई आदमी जमीं पे।
मैं नहीं चाहता कि,
कोई मुझको कहे यहाँ पर,
जाहिल, कातिल और शैतान।
मैं नहीं चाहता कि,
कोई मुझको कहे,
नमक हराम इस देश का,
इसलिए मैं मजबूर और कमजोर हूँ।
क्योंकि मुझको भी तो है,
अपनी जमीं और वतन से मोहब्बत,
और मानवता से प्रेम।
अगर कल को मैं,
नहीं रहूँ ऐसा आदमी,
दोष मुझको मत देना,
तब मेरी कोई मजबूरी ही होगी,
जैसे कि आज हूँ मैं मजबूर,
इस तरह किसी मजबूरी से।
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला-बारां(राजस्थान)