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13 Oct 2025 · 1 min read

ईश्वर कहाँ था

मरकर भी क्या पाना था?
बस एक पुनर्जन्म,
फिर से वही दोहराना था।
ईश्वर की दी हुई व्यर्थता,
क्या वही नियति थी?
​ईश्वर कहाँ था?
जब मैं अँधेरे में था,
जब मैं गिर रहा था?
क्या वह बस एक प्रकाश था,
या एक अँधियारा?
​आँसू ही तो थे मेरे,
जिनसे मैंने उसे देखा।
एक जलती हुई आँख,
जो मुझे देख रही थी।
​ईश्वर!
तुम एक खंजर हो,
जो मेरे सीने में धँसा है।
मैं डरता हूँ तुमसे,
और मैं प्यार भी करता हूँ।
​मैं एक प्यासा हूँ,
जो तुम्हें ढूँढता है।
तुम एक रेगिस्तान हो,
जहाँ मैं भटकता हूँ।
​क्या तुम मुझे सुन रहे हो?
क्या तुम मुझे देख रहे हो?
क्या तुम मेरे साथ हो?
या तुम बस एक कल्पना हो?
​यह एक बिंब है,
एक टूटा हुआ दर्पण।
जिसमें मेरा चेहरा नहीं,
बस एक सवाल है।
​क्या मैं ईश्वर हूँ?
या बस एक व्यर्थता?

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