*करवा चौथ का व्रत महात्म्य (राधेश्यामी छंद)*
करवा चौथ का व्रत महात्म्य (राधेश्यामी छंद)
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1)
यह प्रेम समर्पण है अद्भुत, श्रद्धा का भाव निराला है।
यह करवा चौथ अनोखा है, यह अमरित का मधु-प्याला है।।
2)
यह कार्तिक कृष्ण चतुर्थी को, भारत त्यौहार मनाता है।
सजती सुहागिनें हैं इस दिन, यह सात जन्म का नाता है।।
3)
निर्जल उपवास हुआ इस दिन, इस तप की महिमा भारी है।
यह आदिकाल से चलता व्रत, यह व्रत घर-घर में जारी है।।
4)
चंद्रोदय पर करवे से जल, सोलह श्रृंगार सुहाता है।
जल की धारा प्रिय चंद्र देख, मुख-चंद्र मौन मुस्काता है।।
5)
यह सजना और सॅंवरना प्रिय, अर्पित पति को यह सारा है।
जब तक है चंद्र गगन में शुभ, पति-दर्शन समझो प्यारा है।।
6)
कुछ घटे-बढ़े यदि चंद्र रोज, तो भी यह नहीं तनिक खलता।
खटपट गृहस्थ में होती है, कुछ मीठी खट्टी चंचलता।।
7)
यह जो अटूट प्रिय बंधन है, यह नहीं टूटने पाएगा।
पति में ही प्राण बसे हैं अब, वह ही सर्वस्व कहाएगा।।
8)
यह प्रेम मधुर दिव्यता लिए, जग सदा जीत ले जाएगा।
सबसे अमूल्य निधि प्रेम सदा, यह विजय विश्व में लाएगा।।
9)
यह प्रेम प्रकृति से जुड़ा हुआ, यह नभ में चंद्र सजाता है।
यह दिखा रहा है चंद्र-किरण, जिसका स्वरूप मन भाता है।।
10)
यह है विश्वास अनूठा बल, इस से ही सब अच्छाई है।
इसमें संदेह उपस्थित कब, इसमें कब छल-परछाई है।।
11)
दो हृदय मिले इस तरह आज, यौवन से वृद्ध शरीर हुआ।
विश्वासघात के तम ने पर, घर को गृहस्थ को नहीं छुआ।।
12)
विपदा-विपरीत परिस्थिति में, हॅंसकर यात्रा सब काटी है।
भारत के पति-पत्नी महान, सहयात्रा की परिपाटी है।।
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज), रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451