विनम्रता
यह देह…
केवल एक अंतराल है,
अस्पताल की श्वेत-शून्यता में
अनंत की एक लघु-आहुति।
यहाँ पीड़ा,
स्वयं को पहचानती हुई
एक अपरिचित भाषा है।
वह स्वतंत्रता,
जो जेल की दीवारों से टकराकर
स्वयं पर ही लौट आती है,
क्या वह अपनी छाया से मुक्त है?
वह केवल एक परिधि है,
जिसका केंद्र
हमेशा अज्ञात रहता है।
और फिर श्मशान।
जहाँ जीवन की अंतिम लकीर
अग्नि में घुल जाती है।
वह राख,
जो किसी स्मृति का शेष नहीं,
अस्तित्व के निरर्थक होने का
अंतिम सत्य है।
हम जिस समय के पृष्ठ पर
यह पदचिह्न अंकित कर रहे हैं,
कल वह पृष्ठ
विलीन हो जाएगा।
तो आओ,
इस शून्य में उस विनम्रता को खोजें
जो हमें
हमारे ही भार से
मुक्त करती है।
और उस मौन कृतज्ञता को
जो हमें
हमारे होने की व्यर्थता में
शांत करती है।