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6 Oct 2025 · 2 min read

गिरकर संभलना

शर्म किस बात की है इसमें अगर
गिर भी जाओ कभी मंज़िल की राह में
उनसे तो बेहतर है, जो अपनी ज़िंदगी
गुज़ार देते हैं बस मंज़िल की चाह में।

गिरना तो इंसान को सिखाता है चलना,
हर ठोकर में छुपा होता है संभलना।
जो डरकर बैठ गए, वो क्या पाएंगे,
चलने वाले ही इतिहास बना जाएंगे।

मंज़िलें भी हौसले वालों को पहचानती हैं,
राहें भी उनके कदमों को जानती हैं।
थककर बैठना हार नहीं होती,
उठकर चल देना ही जीत कहलाती है।

सपनों को पाने का रास्ता आसान नहीं,
हर मोड़ पर इम्तहान होते हैं।
जो कोशिश छोड़ जाए बीच में, वो हार गए,
जो चलते रहे , वही सफल होते हैं।

गिरना, उठना, चलना यही सफ़र है,
जो भी हो, सफ़र चलता रहना चाहिए।
चाहे लोग हंसे या ताने कसे,
मंज़िल के सफ़र में कोई रुकना नहीं चाहिए।

रास्ते की ठोकरें बनती हैं साथी,
हर चोट कहती है – “है मंज़िल अभी बाकी”।
हौसला रखो, डर को दूर भगाओ,
गिर भी जाओ तो फिर उठकर मुस्कुराओ।

जो बैठे रहते हैं डर के साए में,
वो क्या जानें सपनों के मायने क्या होते हैं
सपने पूरे होने पर सारी थकान मिट जाती है,
सपनों की राह में भले ही दर्द अनेक होते हैं।

मंज़िल तुम्हारे क़दमों को देख रही है,
हर गिरावट में भी तुम्हें परख रही है।
जो हार मानकर रुक जाए वहीं,
ज़िन्दगी उसकी उससे रूठ रही है।

गिरना तो बस एक इम्तहान होता है,
फिर उठना ही सच्चा सम्मान होता है।
जीत उसी की जो हौसले से लड़ता है,
हार उसी की जो डरकर घर बैठता है।

चलते चलो चाहे कांटे मिलें रास्तों में,
सपने सच होते हैं मेहनत के वास्तों में।
गिरकर भी जिसने मुस्कुराना सीखा,
बस उसने ही जीवन को जीना सीखा।

तो शर्म किस बात की है इसमें अगर,
गिर भी जाओ कभी मंज़िल की राह में।
गिरना हार नहीं, गिरना सबक है,
उठकर चलना ही असली फ़लक है।

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