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2 Oct 2025 · 1 min read

उलझन

उलझन में मत घबराना
ये तो माया की काया है
अलसाकर थकान भरता
हृदय बोझिल कर देता है
मुखरित मुख चन्द्र रजनी
विकल चंचल मन करता
सुखसपनों की प्यासी ये
अमन चैन पात्र लुढ़काते
उदासी छाया ले आता है
नयन पट भींगाया करता
खुश पे घात प्रहार करके
छिप जाता दारूण गलियां
जाल फेंक हृदय लहरों पर
छटपट घट घट घंटे तड़पा
मधुर पावन तन घबड़ाता
उलझन रंग रूप विहीन
विविध प्रकारों से बिखरता
दिल दिमाग को उलझाता
प्यारे ! हम हैं धरती के सपूत
माता की छाया है माथे पर
जड़ता छोड़ बढ़ गमता से
सुलझन का ख़ोजकर मर्ज
ज्यों हीं कभी उलझन हो
त्यों ही बैठ विहँस सोचों
बिखरी उलझन सुलझाओ
मधुर दिलों को छू लेता है
गुलाब खिलता है कांटों पे
पर गुलाब कब उलझता है
हे राही ! चलें सद्कर्म से
सुलझा ही सकून पाता है ।
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टी .पी . तरुण

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