#नवगीत...
#नवगीत…
सोचो, समझो और बताओ।।
यदि स्वाभिमानी हो तो।
(प्रणय प्रभात)
* जिसने दी है चोंच, उसी को देने हैं दाने।
महाभिक्षुओं को मन पंछी दाता क्यों माने??
*अपने पर अपनी उड़ान है अम्बर है। अपना,
क्यों देखें जागी आंखों से पिंजरों का सपना?
बंदी बन पिंजरों के अंदर क्या खाना पीना,
पंख कटा कर पूंछ कटा कर जीना क्या जीना?
रहना है उन्मुक्त सदा बैठे हैं प्रण ठाने।
महाभिक्षुओं को मन पंछी दाता क्यों माने??
* निर्झर, नदी, पहाड़, समंदर अपनी वादी है,
सर्दी, गर्मी, बारिश तीनों का तन आदी है।
अलग कंठ है जीभ अलग है और अलग टोली,
क्यूं बोलें कैसे बोलें हम औरों की बोली?
अपनी चहक राग अपनी है अपने ही गाने।
महाभिक्षुओं को मन पंछी दाता क्यों माने?
* जाल बिछा सकने वालों को जाल बिछाने दो,
तीर चलाना आता है बस तीर चलाने दो।
एक बार जीवन पाया है एक बार मरना,
इन बहेलियों से बतलाओ काहे को डरना?
उनके कुटिल प्रलोभन हमको कभी नहीं भाने।
महाभिक्षुओं को मन पंछी दाता क्यों माने??
* मुख में राम छुरी बगलों में ज्ञान बांटते हैं,
थोड़े से दानों के बदले पूंछ काटते हैं।
मन बहलाने को पाला जी भर के मज़ा लिया,
जब मन चाहा काट पीट थाली में सजा लिया।
चाल चरित्र और चेहरे सब जाने पहचाने।
महाभिक्षुओं को मन पंछी दाता क्यों माने??
संपादक
न्यूज़&व्यूज
श्योपुर (मप्र)