अब सुरक्षा कैसे हो...
अब सुरक्षा खाक होगी तोप या तलवार से,
सरहदों को आजकल खतरा है पहरेदार से।
देश की खातिर सभी को चीख उठना चाहिए,
कोई आशा मत करो इस दौर के अखबार से।
लीडरों से हाकिमों तक सबके सब है बेलगाम,
रिश्वतें ली जा रही हैं आजकल अधिकार से
शौक से रखिए हमारी जिंदगी का हर हिसाब,
कष्ट जितने दे रहे हो, जोड़ दो आधार से।
हैं चरम पर भुखमरी, बेरोजगारी और रेप
अब सदन में इस पे भी चर्चा करो विस्तार से।
एक चेहरे पर लगा है, दूसरा चेहरा यहाँ,
अब वो पदयात्रा करेंगे आए हैं जो कार से।
दौर हो चाहे किसी का सबसे ये मिल जाएंगे,
कौन चोरों को निकाले राजसी दरबार से।
जागिए, वरना ये सिस्टम ही हमें खा जाएगा,
क्योंकि मारा जा रहा है अब मधुर व्यवहार से।
देश को धर्मों में ‘अरशद’ बांटते हैं कुछ कमीन,
अब न देना ध्यान इन पर हम रहेंगे प्यार से।
–