कोई बात न बढ़ती,
कोई बात न बढ़ती,
अगर जबान न चलती,
फूल झरते होते,
यदि मीठा बोले होते,
आग तो लगा दी,
कङूवे शब्द जो सुना दी।
कोई बात न बढ़ती,
अगर जबान न चलती,
तनिक काबू में तो करती,
कैची सी न चलती,
ऊंची न बोलती,
कर्कश न होती।
कोई बात न बढ़ती,
अगर जबान न चलती,
अपनी बात तुम कहती,
लहजा को पकड़ती,
मन बुद्धि से बोलती,
ईर्ष्या से न कहती।
कोई बात न बढ़ती,
अगर जबान न चलती,
तुम्हारी भी चलती,
हमारी भी चलती,
आहिस्ता से बोलते,
आहत तो न होती।
कोई बात न बढ़ती,
अगर जबान न चलती,
अच्छा तुम भी बोलो,
अच्छे से भी बोलो,
चाबुक सा न मरो,
उलझन में न डालो।
कोई बात न बढ़ती,
अगर जबान न चलती,
बात कहने से पहले,
जबान को सुलझा लो,
क्या कह रहे हो,
ज्ञान को जगा लो।
कोई बात न बढ़ती,
अगर जबान न चलती,
अफसोस मै न करता ,
अफसोस तुम न करते,
दुःखी कोई न होता,
यदि ठहर तुम जाती।
रचनाकार
बुद्ध प्रकाश
मौदहा हमीरपुर।