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24 Sep 2025 · 2 min read

*क्यों, क्या कहते हो?*

क्यों, क्या कहते हो?
मौसम की तरह हो गए हो।
जो कल तक मेरे थे
आज परायों से हो गए हो।

हर बात में था अपनापन
अब वो सब खो गए हो।
जो बातों में थी मिठास कभी
अब तल्ख़ साजिश हो गए हो।

तुम्हारी आँखें बोलती थीं कभी
अब चुप्पी में डूब गए हो।
जिन राहों पे साथ थे हम
उन राहों पर अकेले छोड़ गए हो।

क्यों, क्या कहते हो?
मौसम की तरह हो गए हो।
कभी धूप से लगते थे
अब ठंडी हवाओं से हो गए हो।

तुम्हारी हँसी जो सुकून थी
अब अनकहा ताना बन गए हो।
जो पल साथ बिताए थे
किसके लिए गुम कर गए हो?

शब्दों का वरदान था हम पर
अब मौन का भार हो गए हो।
जिनसे बाँटे थे हर राज़
अब उन्हीं से अंजान हो गए हो।

क्यों, क्या कहते हो?
मौसम की तरह हो गए हो।
कभी बूँदों जैसे कोमल थे
अब ओलों से चोट कर रहे हो।

मन की बात जो समझते थे
अब सवालों में बह गए हो।
रिश्ते की जो गर्माहट थी
अब सर्द खामोशी में ढल गए हो।

क्या तुम अब भी हो वो मेरे
या कोई सपना बन गए हो?
बदलाव का ये कैसा रंग
जो हर बार नया हो गए हो?

क्यों, क्या कहते हो?
मौसम की तरह हो गए हो।
कभी पास, कभी दूर
इस खेल में माहिर हो गए हो।

दिल से निकलने की बात नहीं
पर दिल से जरूर उतर गए हो।
तुम्हें खोने का ग़म नहीं
हैरानी है जो तुम इतना बदल गए हो।

ये जो चुप्पी का पर्दा है
उसमें तुम कहाँ खो गए हो?
कह दो कुछ अगर कह सकते हो
वरना सच में, अब तुम…

मौसम की तरह हो गए हो।
क्यों, क्या कहते हो?

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