मेरी आंखों के परदे से पूछो
मेरी आंखों के परदे से पूछो
मैंने क्या मंजर देखा है
फूलों की इस दुनिया मे
छुपा ये खंजर देखा है
मैंने मंजर देखा है ………..
कहने को तो सब अपने हैं
पूरे होते सब सपने हैं …
कश्ती किनारा कर जाता है
समय गुजारा कर जाता है
वक्त हमारा आता है जब
सबको हमारा कर जाता है
फूलों की खिलती खुशबू में
तितली , भवरे सब आते हैं
आए कभी पतझड़ मौसम
सब कुछ सूना कर जाते हैं
हमने टूटी कश्ती देखी है
मैंने मिटती हस्ती देखी है
सीधेपन से तेवर वाली
उजड़ी हुई बस्ती देखी है
मैंने हर मंजर देखा है……