Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
23 Sep 2025 · 1 min read

मेरे जितने भी अपने थे दूर हमसे हो गए

मेरे जितने भी अपने थे दूर हमसे हो गए
चांद को चाहने वाले भी, सूरज के हो गए

वीरान कर गई बाजार की रौनके उनको
पश्चिम को जाने वाले थे , पूरव के हो गए

कवि दीपक सरल

Loading...