हाथों को रोशन करे ऐसा फूल नहीं मिला
हाथों को रोशन करे ऐसा फूल नहीं मिला
कोई राही यहां हमको मकबूल नहीं मिला
राहों में बाटी कई अधूरी मोहब्बतें हमने
ब्याज का छोड़िए जी हमें मूल नहीं मिला
कवि दीपक सरल
हाथों को रोशन करे ऐसा फूल नहीं मिला
कोई राही यहां हमको मकबूल नहीं मिला
राहों में बाटी कई अधूरी मोहब्बतें हमने
ब्याज का छोड़िए जी हमें मूल नहीं मिला
कवि दीपक सरल