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20 Sep 2025 · 1 min read

नवगीत:- सपनों की चादर

*मन के भाव तुम्हारे पढ़कर,
मुझे खुशी होगी।
चाहत के किस्सों को गढ़कर,
मुझे खुशी होगी॥

नित चाहत के
चौराहे पर,
प्रेम खड़ा होगा।
शब्दों का सुरताल
समझकर,
अर्थ बड़ा होगा॥

अलंकार गीतों में मढ़कर,
मुझे खुशी होगी।
मन के भाव तुम्हारे पढ़कर,
मुझे खुशी होगी॥

बुनते ही
सपनो की चादर,
रंग खिला होगा।
निकल गमों की
गहराई से,
दूर गिला होगा॥

अनुरागों की सीढ़ी चढ़कर,
मुझे खुशी होगी।
मन के भाव तुम्हारे पढ़कर,
मुझे खुशी होगी॥

आशाओं के
दीप जलाकर,
राह सजाऊँगा।
विश्वासों की
डोरी थामे,
स्वर लहराऊँगा॥

प्रेमपंथ में आगे बढ़कर,
मुझे खुशी होगी।
मन के भाव तुम्हारे पढ़कर,
मुझे खुशी होगी॥*

©दिनेश कुशभुवनपुरी

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