भाषा मधुरिम सरल सी, जन-मानस की चाह।
भाषा मधुरिम सरल सी, जन-मानस की चाह।
रस अलंकार से युक्त है, रखती शब्द अथाह।।
शब्द समाहित कर रही, हरपल सिंधु समान।
स्वाद सभ्यता की मगर, देती मीठा पान।।
सुर वाणी की गुणवती, हिंदी सुता सुजान।
सौम्य शील संस्कार से, होता जिसका मान।।
एकरूपता में सदा, करवाती अभ्यास।
वहीं एकता है जहाँ, समता होती खास।।
रसना रस हिंदी जहाँ, वहाँ श्रवण भी तृप्त।
प्रेम मान श्रद्धा मिले, अपने जैसे लिप्त।।
:- राम किशोर पाठक (शिक्षक/कवि)