घनाक्षरी
घनाक्षरी
~~~~
हिंदी का विशाल वृक्ष फलता है फूलता है,
इसकी सघन छांव दे रही आनंद हैं।
सींचते सभी इसे हैं स्नेहसिक्त भावना से,
समाप्त हो रहे सभी मनभेद द्वंद्व है।
सिंधु रचना प्रवाह में घुले मिले हुए,
आदिकाल से अनेक से सुरम्य छंद हैं।
मातु भारती की आन बान और शान हेतु,
हो रहे सफल जनमन के प्रबंध हैं।
~~~~~~~~~~~~
-सुरेन्द्रपाल वैद्य