क्षिप्रा की व्यथा
वो क्षिप्रा मां, जिसका जल था निर्मल,
जिसका स्मरण ही कर देता मन को शुद्ध सरल।
आज वही मोक्षदायिनी ,मां क्षिप्रा प्रदुषण में डूबी है,
आधुनिकता की आंधी में लूट गई उसकी खूबी है।
कभी जिसके तट पर गूंजते थे श्रीकृष्ण के गीत,
आज वहाँ बिखरा है प्रदूषण और अपवित्र रीत।
पुराणों में वर्णित जो अमर कहानी है,
क्या आज क्षिप्रा वैसी पावन निशानी है?
हमने कहा उसे मां, पर संतान का धर्म भुला बैठे,
स्वार्थ के अंधकार में उसका आँचल छला बैठे।
कौन संतान अपनी मां को यूं दूषित करती है,
कौन अपनी ही जननी को दर्द से भरती है?
प्रदूषण के कारण वही पुराने हैं,
नालों का पानी, रसायन और बहते कारखाने हैं।
पर समाधान भी हमारे हाथों में छिपा है,
बस संकल्प चाहिए, जो भीतर से उठा
आओ मिलकर प्रतिज्ञा करें हम सब संतान,
लौटाएँ मां को उसका खोया हुआ सम्मान।
-✍🏻 गणपत सिंह ठाकुर