काँच से टूट कर बिख़र जाते है हम गरीबों के सपनें।
काँच से टूट कर बिख़र जाते है हम गरीबों के सपनें।
हमारे पास पक्के घरों की निशानी नहीं होती।।
मधु गुप्ता “अपराजिता”
काँच से टूट कर बिख़र जाते है हम गरीबों के सपनें।
हमारे पास पक्के घरों की निशानी नहीं होती।।
मधु गुप्ता “अपराजिता”