धागा टूटा नेह का, नहीं रही वो बात।
धागा टूटा नेह का, नहीं रही वो बात।
छुरा पीठ में घोंपकर, दिखा गए औकात॥
दिखा गए औकात, हमारे यार पुराने।
बदल गए वो लोग, नहीं उनको पहचाने॥
खुली ‘सर्व प्रिय’ नींद, देर से ही मैं जागा।
आस्तीन के साँप, तोड़ बैठे हैं धागा॥
राजेश पाली “सर्वप्रिय”