हिंदी पर दोहे
दोहे
लोग समझते ही नहीं, निज भाषा का मर्म।
हिंदी भाषा बोलने, में आती है शर्म॥१
अपने घर में ही उसे, मिले नहीं सम्मान।
गायब दिखती है तभी, हिंदी की मुस्कान॥२
भारतमाता के गले, अंग्रेजी का हार।
ये है भारत देश का, कैंसा शिष्टाचार॥३
राजभवन में बिछ रहे, अंग्रेजी के फूल।
हिंदी रस्ते में खड़ी, चाट रही है धूल॥४
हिंदी के तन पर लगे, कितने पक्के दाग।
दिन-दिन फैली जा रही, अंग्रेजी की आग॥५
हिंदी से तोड़ो नहीं, आप लोग संबंध।
महका देगी देश को, हिंदी सरस सुगंध॥६
हिंदी उतनी शुद्ध है, जितना गंगा नीर।
सदा बढ़ाती देश में, मर्यादा का चीर॥७
कविगण, लेखक कर रहे, हिंदी का विस्तार।
गूँजेगी इस विश्व में, हिंदी की टंकार॥८
राजेश पाली ‘सर्वप्रिय’