जय भारत जननी पावनी
///जय भारत जननी पावनी///
जय भारत जननी पावनी,
सदा रही शौर्य ज्ञान समृद्ध।
म्लेच्छों को मृत्य भूमि यह,
उच्च मूल्यों से रही आबद्ध।।
भारत जननी के पुत्र सुमेधा,
जिनका जीवन सरल विमल।
चरित्र जिनका परम पुनीत,
दुष्टों के लिए दहकते अनल।।
संयम विवेक समरसता साध्य जिनका,
साधन भी जिनके सदा शुचिधन।
परिष्कृत दिनचर्या रही आदिकाल से,
नहीं कभी कोई झूठ फरेब प्रवण।।
सकल सृष्टि के लिए आत्मभाव संग,
प्रकृति संरक्षण और लोक कल्याण।
जड़ चेतन संस्कृति के लिए समर्पित,
परिजन संग आत्म राष्ट्र विश्व निर्माण।।
सदा निष्कलंक परिवेश भरत जनों का,
स्थापित किया धर्म और आदर्श सबने।
आदर्शों का किया पालन श्रुति सत्वर,
अमृत घट भर दिया जगती में हमने।।
भारत के जागने से जागती जगती,
फैलाया हुआ आलोक भरत जनों का।
विश्व को उत्कृष्ट विग्रह भारत का,
हम करें संरक्षण इन सब धनों का।।
स्वरचित मौलिक रचना
रवींद्र सोनवाने ‘रजकण’
बालाघाट (मध्य प्रदेश)