दोहे
सबकी अपनी आस्था, अलग सभी की राय।
बंद आंख से रब दिखे, पग-पग क्यों भरमाय।।
अंखियां अब पथरा गईं, टूटी अब हर आस।
आओ प्रीतम लौटकर, करना नहीं उदास।।
माला जपना प्रेम की, लगता अद्भुत काम।
मेरी वो राधा बनी, मैं उसका घनश्याम।।
बहुत किया था प्रेम से, उसने मुझ पर राज।
माना था दुनिया जिसे, भूल गया है आज।।
अश्रु धारा उमड़ रही, होते रहे निढाल।
सारी चिंता छोड़कर, खुद को लिया संभाल।।
साहस कर अब छोड़ दी, मैने उसकी याद।
निराशा पर विजय हुई, हार गया अवसाद।।