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5 Sep 2025 · 1 min read

लौट आओ ज़रा

कभी सोचता हूँ,
लोग क्यों इतने जल्दी बदल जाते हैं,
क्या सफ़र ही इतना लंबा है
या दिल अब छोटे हो गए हैं।

हमने हंसी में बाँटे थे जो पल,
वो अब तस्वीरों में कैद हैं,
और तस्वीरें भी
धीरे-धीरे धुंधली होने लगी हैं।

कभी लगता है—
अगर उस दिन थोड़ा और ठहर जाते,
तो शायद कह देते वो बातें
जो अब रह-रह कर चुभती हैं।

ज़िंदगी में छूटे हुए लोग
किताब के अधूरे पन्नों जैसे होते हैं,
वो पूरे किए बिना
कहानी कभी पूरी नहीं लगती।

कुछ रिश्ते लौट भी आते हैं,
पर वैसा जादू नहीं लौटता,
जैसा पहली बार था—
जैसा पहली हंसी, पहला यक़ीन।

हम चाहे जितना समेट लें यादों को,
वक़्त अपनी मिट्टी डाल ही देता है।
और मिट्टी पर लिखे नाम
कभी अमर नहीं रहते।

फिर भी दिल है कि मानता नहीं—
हर रोज़ दरवाज़े पर कान धर देता है,
कि शायद…
कोई खोया हुआ लौट आए।

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