*साम्ब षट्पदी---*
साम्ब षट्पदी—
04/09/2025
मेरा मन।
अति क्षुब्ध सदा,
करता रहा नर्तन।।
बजाते रहे लोग तालियाँ।
मुझे समझ नहीं पाया किसी ने,
भरकर चले अपनी सब प्यालियाँ।।
रीता घट।
सूखा कोई वट।।
किसके काम में आये।
बस देखकर लौट जाये।।
धूप वर्षा ठंड जो कल सहा था।
तब बहुत थे जब छलक रहा था।।
अतिवृष्टि।
भयावह होती।
हाहाकार मच जाता
दुर्घटनाओं को बीज बोती।।
जलप्लावन का नमूना ले आती
काँप उठती है भय से व्याकुल सृष्टि।।
— डॉ. रामनाथ साहू “ननकी”
संस्थापक, छंदाचार्य
(बिलासा छंद महालय, छत्तीसगढ़)
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