जो अपने आप रौशन हो कभी मुज्तर नहीं होता
जो अपने आप रौशन हो कभी मुज्तर नहीं होता
अमावस का असर कोई सितारों पर नहीं होता
शजर काटो न अब कोई जो बुलबुल से मोहब्बत है
इसी के शाख पर सोती है उसका घर नहीं होता
नफस को जीत लो अपने तो खुद ही शाह हो जाओ
तखत पर बैठने भर से कोई कैसर नहीं होता
न जाने कैसी गड़बड़ है खुदा की इस निजामत में
जहां पर नींद आती है वहां बिस्तर नहीं होता
अना को छोड़कर अपने नशेमन को बचाना है
नशेमन के बिखरने से बुरा मंजर नहीं होता
मोहब्बत के तराने गुनगुनाता है जमाना पर
मोहब्बत करने वालों के धड़ो पर सर नहीं होता
अलामत इस्तिआरा पैकर ओ तश्बीह लाजिम हैं
रदीफ़ ओ काफिया से ही कोई शायर नहीं होता