*यह जो घोर अराजकता हम, सड़कों पर पाते हैं (हिंदी गजल)*
यह जो घोर अराजकता हम, सड़कों पर पाते हैं (हिंदी गजल)
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1)
यह जो घोर अराजकता हम, सड़कों पर पाते हैं
उनके स्रोत देश में हैं या, बाहर से आते हैं ?
2)
जिनकी चादर काली-पीली, सौ-सौ छेदों वाली
वही विरोधी के चरित्र को, मैला बतलाते हैं
3)
वृद्धाश्रम की प्रथा देश में, जाने कैसे आई
हमने तो देखा त्रेता में, बेटे वन जाते हैं
4)
कितना सस्ता है हॅंस-हॅंसकर, सबसे बातें करना
लेकिन क्रूर व्यक्ति कुछ सबको, फिर भी रुलवाते हैं
5)
वंदे भारत कहो जोर से, भारत की जय बोलो
सौ-सौ हैं उपकार देश के, आओ मिल गाते हैं
6)
बुझी-बुझी-सी बातें करके, घबराहट फैलाना
देश-विरोधी साजिश यह भी, कुछ जन अपनाते हैं
रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज), रामपुर उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451