आंखें भी हैं चराग़ भी है...
आंखें भी हैं चराग़ भी है आइना भी है
ऊपर से जुल्म ये कि यहाँ रतजगा भी है
तस्वीर लाजवाब है ये मानते हैं हम
लेकिन बताओ इसमें कि रंगे वफा भी है
मुमकिन नहीं है चाँद-सितारों को तोड़ना
ये झूठ है सफेद, मगर बोलना भी है
इस हिज़्र में भी मुझको कोई याद आ गया
कमरा है बंद, इसमें मगर रास्ता भी है
सरदार आशिकों के जो बनने चले हो तुम
क्या कोई घूँट ज़हर का तुमने पिया भी है
ये और बात है कि पिघलने लगा है तू
महसूस हो रहा है कि तुझ में अना भी है
‘अरशद’ मैं टूटकर भी खड़ा हूं उसी जगह
नाकामियों के साथ मेरा हौसला भी है