भीड़ चोर
भीड़ चोर
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एक विषय गंभीर,
राह निकले नकली पीर,
चलाए अंधेरे में तीर,
जुटाए,
भाड़े की भीड़,
बहता उसके कारण
गरीबों का नीर।
हर देशी बनो, वीर;
वरना,
हर लेगा ये भारत का चीर।
मत के लिए घूमे,
भेष बदल हर ओर,
भीड़ देता नहीं इसको,
अपना मत।
चिल्लाए तब, ये लगा के जोर;
तब कहता ‘पी के’
देखो भटक रहा है,
‘भीड़ चोर’, , , , ,