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2 Sep 2025 · 1 min read

'भीरूभाई'

‘भीरूभाई’
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भटके भीरू,भाड़े के भीड़ संग;
हिंद की जनता हुईं, उससे तंग।

वह लगे सबको,देशी तैमूर लंग;
नाम पप्पू, नहीं उसमें कोई ढंग।

भक्त कहे युवा, रक्त में कई रंग;
सीमा जाके क्यों न लड़ता जंग।

उसे फूटी आंख,सेना न सुहाता;
बस,आतंकी जन ही उसे भाता।

हर चुनावी सच, उसको सताता;
‘राष्ट्रभक्ति’ जनता उसे दिखाता।

कुछ लोभ में भीड़ तो जुट जाता;
कहीं से भी मत,दान में न आता।

तो भीरुभाई चीखता-चिल्लाता;
चुनाव आयोग पर, दोष लगाता।

काश! निर्बुद्धि को, कोई बताता;
राष्ट्रपुष्प से,राष्ट्रभक्त न टकराता।

जब जनता, संकटमय हो जाता;
राष्ट्रपुष्प, सबमें देशप्रेम जगाता।

कहे पंकज, कमल ही देशी शान;
इस अटलसत्य को सब लो मान।

वह मंदबुद्धि जब मन से जागेगा;
हस्तकमल लिए भीड़ में भागेगा।

🪷🪷🪷🪷🪷🪷🪷🪷

pk

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