'भीरूभाई'
‘भीरूभाई’
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भटके भीरू,भाड़े के भीड़ संग;
हिंद की जनता हुईं, उससे तंग।
वह लगे सबको,देशी तैमूर लंग;
नाम पप्पू, नहीं उसमें कोई ढंग।
भक्त कहे युवा, रक्त में कई रंग;
सीमा जाके क्यों न लड़ता जंग।
उसे फूटी आंख,सेना न सुहाता;
बस,आतंकी जन ही उसे भाता।
हर चुनावी सच, उसको सताता;
‘राष्ट्रभक्ति’ जनता उसे दिखाता।
कुछ लोभ में भीड़ तो जुट जाता;
कहीं से भी मत,दान में न आता।
तो भीरुभाई चीखता-चिल्लाता;
चुनाव आयोग पर, दोष लगाता।
काश! निर्बुद्धि को, कोई बताता;
राष्ट्रपुष्प से,राष्ट्रभक्त न टकराता।
जब जनता, संकटमय हो जाता;
राष्ट्रपुष्प, सबमें देशप्रेम जगाता।
कहे पंकज, कमल ही देशी शान;
इस अटलसत्य को सब लो मान।
वह मंदबुद्धि जब मन से जागेगा;
हस्तकमल लिए भीड़ में भागेगा।
🪷🪷🪷🪷🪷🪷🪷🪷
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