आंखों के परदे से जानो, दिखता है जो सज ना मानो ,
आंखों के परदे से जानो, दिखता है जो सच ना मानो ,
दिखने में तो बात अलग है ,पर राही किरदार अलग है
बे मौसम सब पतझड़ है ,सावन की यहां बात अलग है
देखें सरल कई अब मंजर , हर मौसम का राग अलग है
✍️कवि दीपक सरल