हिंदी से प्रीत
हिंदी से प्रीत
हिंदी से जब प्रीत लगाई,
खुल गए प्रज्ञा चक्षु सारे।
ये सरल जगमोहनी भाषा,
हृदय तल में उतरे हमारे।।
अक्षर अक्षर जिसका मंत्र ,
शब्द शब्द हैं महा वाक्य।
ये परम सौभाग्य की भाषा,
विश्व को देगी सदा ऐक्य।।
साहित्य भाव की महाउदधि,
यहां अमित रत्न भंडार भरा।
जिन खोजा तिन पाया इसमें,
हिमगिरी सम उत्तुंग महावरा।।
नमन तुम्हें विश्व प्रभाकारिणी,
सकल जगत का संताप हरो।
तुम्हारी प्रतिष्ठा अतुलनीय है,
जन मन में पियुष उदधि भरो।।
तेरे करतल में जगभाग्य लिखा है,
जग समग्र शीतल सौहार्द्र बना दो।
तुझ बिन जग में मार्ग नहीं सूझता,
सकल जगत का उद्धार करा दो।।
स्वरचित मौलिक रचना
रवींद्र सोनवाने ‘रजकण’
बालाघाट (मध्य प्रदेश)