जन्माष्टमी
मेहनत से है तुम्हें तराशा
फिर भी हमको मिली निराशा
मिट्टी की कीमत न समझें
मिट्टी के जिनके शरीर हैं
हम फकीर हैं
कैसे कैसे लोग पड़े हैं
कुछ छोटे कुछ बहुत बड़े हैं
चका चौध की दुनिया मे
मरे हुए सबके जमीर हैं
हम फकीर हैं
काश…इधर भी कोई कृपा हो जाती…पहले के दौर में मिट्टी के खिलौने जन्माष्टमी पर खूब खरीदे जाते थे..ये मेक इन नहीं मेड इन इंडिया हैं…लेकिन स्वदेशी को विचारा विक्रेता खुद ही निहार रहा है….ये है बदलता दौर… ख़ुद मिट्टी का खिलौना है और इनसे…….
– अभिनव अदम्य