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15 Aug 2025 · 1 min read

भूख– (सच्ची घटना पर आधारित एक दृश्य)

वो तो अम्बर ओढ़े बैठा फटी चटाई सींता है,
अपने सपने साथ लिए किस्मत से रीता रीता है,
भोली सी सूरत उसकी और चेहरे पर मुस्कान लिय,
बेटा मगरू का था मां की यादों को बस साथ लिय,
पढ़ने आता इसीलिय बस दो रोटी भर मिल जाए,
मैं तो आधी ही खाऊं पर क्षुधा बहिन की मिट जाय,

लेकिन भाग्य कहां कब तक भूखे पेटों का होता है,
और विधाता कहां कभी भूखों को रोटी देता है,
पांच बरस का बच्चा आंखों में आंसू छलका जाता,
अपनी दो रोटी में से जब एक बहिन को दे जाता,

मैं अपने मस्तिष्क को दरबारों में ऊपर रखता हूं,
इसीलिए मैं भूखे पेटों की तड़पन को गाता हूं,

स्तब्ध खड़े सारे शिक्षक अधरों पर मौन के बादल थे,
जब उसने बोला सर कल हम बिना खाए ही सोए थे,
सबके हृदय प्रकंपित थे आंखों से झरने बहते थे,
मन में एक भयावह आंधी हाथों में अंगारे थे,

उसकी सीरत से सबकी आंखों में सात समुंदर थे,
पांच बरस के बच्चे से रिश्ते नाते सब हारे थे।

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