आखिर मेरा गुनाह क्या है? बस एक लड़की होना
मेरा गुनाह क्या है? बस एक लड़की होना
मैं घर से बाहर निकलती तो चार आंखे मेरे संग चलती
मैं न देखूं किसीको फिर भी आस पास अपने बारे में ही सुनती
चलो मान लिया मैं घर से बाहर निकलूंगी ही नहीं
अच्छे से रहूंगी कोई गलती करूंगी ही नहीं
पर तब भी मेरे रहने के ढंग पे सवाल आयेंगे
मैं क्या करु कैसे रहूं बहुत ज्ञान पाएंगे
वो घर भी तो मेरे लिए सुरक्षित नहीं जहां मुझे पराया धन कहा गया हो
और उस घर को
जहां मुझे लाल जोड़े में भी जलाया गया हो
चूल्हे की आग में तपाया गया हो
मेरे ही दहेज के पंखे से लटकाया गया हो
और न जाने कितनी काली करतूतों से सताया गया हो
आखिर मेरा गुनाह क्या है? बस एक लड़की होना
मैं क्या ही उम्मीद रखूं दुनिया से जब मां की कोंख भी मेरे लिए सुरक्षित न निकली
दो धारियों से मान लिया सबने मैं लायक नहीं और वहां भी मेरे मरने की चीख निकली
चलो मान लिया मैं वहां से जिंदा बाहर आती तो एक नई दुनिया पाती
जिस दुनिया में मैं मुस्कुराती, शिक्षा पाती और बहुत सारी खुशियां कमाती
पर ये तो सच ही नहीं , यहां तो कुछ और ही होता
मेरे हंसने से कुछ ही हंसते बहुत से चेहरों का रंग उतर जाता
जो बेटों से कोसों दूर उन संस्कारों और सभ्यता के स्कूल भी भेजा जाता
फिर नौकरी के समय मेरी काबिलियत पे शक करा जाता
और ये तो लड़की है इसके बस की नहीं , ये बोलकर रिजेक्ट कर दिया जाता
आखिर मेरा गुनाह क्या है? बस एक लड़की होना
चलो मान लिया एक नौकरी मिल भी जाती
मैं अपने सपने , पैसे, खुशियां सब कमाती
फिर घूम फिरकर बात वही आ जाती
अब समाज ये निर्णय लेता कि अच्छा होगा यदि इसकी शादी कर दी जाती
फिर एक अच्छा सा योग्य पुरुष देखकर मैं एक अनजान घर भेज दी जाती
जहां मैं तानो से, कामों से, आदर्शों से , तौर तरीकों से दबाई ही जाती
या तो दहेज के नाम पर जिंदा जला दी जाती
या जिंदा होकर भी मरे हुए सा आदर पाती
आखिर मेरा गुनाह क्या है? बस एक लड़की होना
चलो मान लिया मुझे अच्छा पति मिल जाता
मुझे किसी काली करतूतों से नहीं, बल्कि लक्ष्मी सा पूजा जाता
मुझे सारी खुशियां सारे हक मिलते
फिर मुझको खूब पैसा , आजादी, सारे रंग मिलते
फिर मैं बाहर निकलती और मैं भी दुनिया संभालती
मैं न कहती कुछ बुरा किसी से पर मेरे ढंग को कहा जाता
मैं कैसे चल रही किसके संग चली और कैसे कपड़ों में
मेरे चाल को बदचलन और मेरे कपड़ों को छोटा कहा जाता
मैं शुद्ध रहती अपने मन में मगन मगर मुझे बुरी नजरों से देखा जाता
और वो भी इसलिए क्योंकि पुरुषों का मन मचल ही जाता
और फिर मुझे गलत हाथों से गलत जगह छुआ जाता
किसी खिलौने की तरह खेला जाता और तोड़ मरोड़ कर किसी नाले में फेक दिया जाता
आखिर मेरा गुनाह क्या है ? बस एक लड़की होना
Hey readers! I wrote this poem for those womens suffering from Inequality and Injustice. And in view of 1000 of brutal crimes done everyday, these are pure thoughts of women’s undergoing rape, murder and violence.