लौट आया स्वर्णयुग
गरीब भूखे मर रहे हैं महंगाई की मार में,
जो कमाया वो खप गया बीमारी के इलाज में ।।
ऐसी दुर्दशा देखी नहीं जब भीख मांगने को मजबूर है,
काम धंधा सब बंद पड़ा है रो रहे मजदूर हैं ।।
दूध के लाले पड़े हैं साक भाजी तक पहुँच नहीं,
किसान कितना क्या उगाए जब बचा ही खेत नहीं ।।
खेतों में दीवार खिंच रही हैं कट रही सड़क कॉलोनियाँ,
चीन से माल आ रहा है बंद हो रही हैं नई पुरानी फैक्ट्रियां ।।
किसान रिक्सा जोत रहा मुँह छिपाकर शहर में,
गाँव बंजर हो रहे हैं बढ़ रही हैं शहरों में झुग्गियाँ ।।
नफरत का माहौल है फिर भी युवा मर रहा दिल की मर्ज में,
हाथों में पकड़ कर स्मार्ट फोन नाच रही गाँव शहरों की छोरियाँ ।।
बंद हो रहे स्कूल कालेज मंदिरों का हो रहा भव्य निर्माण है,
कौन सच्चा देशभक्त है अब यही मीडिया मुन्सिफों का सवाल है ।।
शिक्षा व्यवस्था ठप्प हो चुकी है ये बाबा-तांत्रिकों का दौर है,
साकार करने अखंड भारत का स्वप्न, बुलडोजर का हल्लाबोल है ।।
“the pacific” (प्रशांत सोलंकी)