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23 Jul 2025 · 1 min read

विधा - अंजनेय/हनुमत छंद

विधा – अंजनेय/हनुमत छंद
मात्रा भार – 16 , चरणान्त 22 , वर्ण संख्या 11

शिव शंकर का डमरू बाजा ।
नाच उठे तन्मय नटराजा ।
धरा मगन हो नृत्य दिखाती ।
सावन की कजरी वह गाती ।।

नाचे कुदरत खिली खिली है ।
आतप से अब मुक्ति मिली है ।
सावन दस्तक देकर आया ।
खिली सृष्टि यह शिव की माया ।।

सावन की महिमा अति न्यारी ।
डगर चले हैं काँवड़ धारी ।
नदी नदी से जल भर लाए ।
शिव अर्चन जो है मन भाए ।।

पद यात्रा है लगे सुहावन ।
गीत अधर हैं साजे पावन ।
जल अर्चन है शिव का होना ।
मन के पाप सकल हैं धोना ।।

शुद्ध आचरण रखें जरूरी ।
दौड़ दौड़ तय करते दूरी ।
स्नान करें तीरथ फल पाते ।
पूजन करते शिव को ध्याते ।।

मात पिता काँवड़ बिठलाए ।
जी भर कर आशीष कमाए ।
माह सरस है सावन आया ।
भक्तों का जमघट लग आया ।।

सावन में शिव को रटते हैं ।
महादेव को सब भजते हैं ।
ओम नाद कर ओम उचारे ।
शिव आराधन सदा उबारे ।।

धरा पावनी रज मस्तक है ।
शिव के द्वारे पर दस्तक है ।
हुई धारणा मन अब पूरी ।
किए दरस तो हुई सबूरी ।।

स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )

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