विधा - अंजनेय/हनुमत छंद
विधा – अंजनेय/हनुमत छंद
मात्रा भार – 16 , चरणान्त 22 , वर्ण संख्या 11
शिव शंकर का डमरू बाजा ।
नाच उठे तन्मय नटराजा ।
धरा मगन हो नृत्य दिखाती ।
सावन की कजरी वह गाती ।।
नाचे कुदरत खिली खिली है ।
आतप से अब मुक्ति मिली है ।
सावन दस्तक देकर आया ।
खिली सृष्टि यह शिव की माया ।।
सावन की महिमा अति न्यारी ।
डगर चले हैं काँवड़ धारी ।
नदी नदी से जल भर लाए ।
शिव अर्चन जो है मन भाए ।।
पद यात्रा है लगे सुहावन ।
गीत अधर हैं साजे पावन ।
जल अर्चन है शिव का होना ।
मन के पाप सकल हैं धोना ।।
शुद्ध आचरण रखें जरूरी ।
दौड़ दौड़ तय करते दूरी ।
स्नान करें तीरथ फल पाते ।
पूजन करते शिव को ध्याते ।।
मात पिता काँवड़ बिठलाए ।
जी भर कर आशीष कमाए ।
माह सरस है सावन आया ।
भक्तों का जमघट लग आया ।।
सावन में शिव को रटते हैं ।
महादेव को सब भजते हैं ।
ओम नाद कर ओम उचारे ।
शिव आराधन सदा उबारे ।।
धरा पावनी रज मस्तक है ।
शिव के द्वारे पर दस्तक है ।
हुई धारणा मन अब पूरी ।
किए दरस तो हुई सबूरी ।।
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )