" बंधन है मर्यादा "
विधा – गीत (भिखारी छंद)
कुल मात्रा 24, यति 12, 12, पदान्त: गुरु गुरु
गीत
अनुशासित हो जीना , संयम यह सिखलाता ।
बंधन है मर्यादा , जीवन खिल खिल जाता ।।
वाणी कर्म हमारे , इन्हें शुद्ध रखना है ।
सदा संतुलन बैठे , बस प्रयास करना है ।
सम्मानित हो जीते , शांति सदा मन पाता ।।
बंधन है मर्यादा , जीवन खिल खिल जाता ।।
रिश्ते , व्यवहारों में , संयम बड़ा जरूरी ।
सहज निभाएं इनको , नहीं दिखे मजबूरी ।
पद , पदवी कैसी भी , अनुशासित ही पाता ।।
बंधन है मर्यादा , जीवन खिल खिल जाता ।।
परिवर्तन की बेला , रहती आती जाती ।
गम , खुशियों की झोली , खाली कब रह पाती ।
समय चक्र कब ठहरा , गति जो नित दिन पाता ।।
बंधन है मर्यादा , जीवन खिल खिल जाता ।।
देव मनुज को बाँधे , मर्यादा की रेखा ।
कुदरत , नभ , धरती हो , बँधे बँधे सब देखा ।
संघर्षों की गाथा , जन जन है दुहराता ।।
बंधन है मर्यादा , जीवन खिल खिल जाता ।।
जिम्मेदारी पूरी , मर्यादा से होती ।
बीज सफलता के तो , मर्यादा ही बोती ।
इतिहासों में अंकित , नाम तभी हो पाता ।।
बंधन है मर्यादा , जीवन खिल खिल जाता ।।
स्वरचित / रचियता –
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )