जागो ऐ मेरे वतन
जागो ऐ मेरे वतन
जागो बहादुर साथियों
जागो शिक्षा को समर्पित
गुरुओं ओ विद्यार्थियों।
जागो खेतों के उजालों
जागो अन्नदाता किसानों
जागो धरती के सपूतों
जागो मन के नौजवानों।
जागो पनघट की डगर से
आसमां तक की कहानी
जागो माँ शक्ति समन्वित
जागो कल्याणी भवानी।
फिर गुलामी के भंवर में
जा रहा है देश अपना
हाथ जोड़े कह रहा है
लाखों की आंखों का सपना।
साजिशों के हाथ पर
आघात करते क्यों नही तुम
इस बदलते दौर की
कुछ बात करते क्यों नही तुम।
कौडियों के भाव बिक जाए
न मेहनत का पसीना
मुफलिसी की रात काटे
पल घड़ी हर दिन महीना।
रोजी रोटी की फिकर में
कट न जाये उम्र सारी
मेहनतकशी अभिशाप हो
बढ़ती न जाये लाचारी।
बंधुआ मजदूरी की परिभाषा में
ढल ना जाये श्रम
अपने हक़ को हाथ फैलाते
नजर न आये हम।
आज की खामोशियाँ
कल की सजा बन जाएगी
वक़्त बीता तो कोई भी
युक्ति ना काम आएगी।
नींद गहरी त्याग कर
जागो उभरते आसमानों
जागो ऐ मेरे वतन
जागो वतन के स्वाभिमानों।
तुमने बनाई जो इमारत
रोज बेची जा रही है
ऐसा करके जिंदगी ही
पीछे खींची जा रही है।
चंद सौदबाजों की मुट्ठी में
ना सारा जहां हो
रोक लो कि तुम वतन हो
तुम वतन के बागवां हो।
जागो बस्ती के ठिकानों
जागो शहरों के घरानों
गांवों की उम्मीद जागो
जागो सच्चे निगहबानों।
मनुजता के वीर जागो
जागो अधम के अवसानों
जागो ऐ मेरे वतन
जागो वतन के नौजवानों।
-देवेंद्र प्रताप वर्मा ‘विनीत’