सूर्य कांति
सूर्योदय होने से पहले,
अंधकार गहराता है,
ज्यों ज्यों अंत निकट आता है ,
त्यों-त्यों द्वेष तिमिर का परचम,
नभ में लहराता है,
रात्रि की हाहाकार ,
भूर भुवर दहलाती है,
पर, निर्भिक चित्त से,
सूर्योदय की तैयारी,
नभ प्रांगण में पलती रहती है,
सूर्योदय होने से पहले,
वारिद काले का रोव अभी,
गरज गरज चिल्लाता है,
निशिचर विषधर बन,
फन फैलाता है,
इधर भेरिया निज सहचर संग,
तांडव नृत्य दिखाता है
भूमि पर,भूज भीत दशा में,
क्रंदन शीश झुकाता है,
ठहर जरा रे !रिपु समस्त,
दिनकर के रथ को आने दे ,
पौरुष भाल सज जाने दे ,
रे जलद! तेरी,
मति गति होगी,
है तू,
कुंठित पथ का रोगी ,
तू अनुचर बन गाएगा,
सविता पथ जब आएगा,
सुन! विषधर का भी फन,
कुचला जाएगा,
भयभीत धरा का,
रोम-रोम पुलकित,
हो गुण गाएगा।
उमा झा 🙏🏻🙏🏻🚩🚩