जीवन एक कहानी है
///जीवन एक कहानी है///
जगती में द्वंद भरी,
जीवन एक कहानी है।
ना समझ सके तो शाप सी,
समझ गए तो वरदानी है।।
जीवन का सत्य कितना,
अनबूझा और अनोखा है।
जन्म के संग ही मृत्यु बदी है,
जाने कैसा साथ-साथ का लेखा है।।
प्रकृति में उद्भव और विनाश का,
लेखा कितना आस पास का।
साथ-साथ घड़ते लेते मूर्त रूप,
फिर भी मिलता नहीं सूत्र भविष्य के आभास का।।
प्रारब्ध और कर्म का मिला-जुला,
स्वरूप है जीवन के मर्म का।
फल पुण्य का या पाप का,
प्रगटेगा साथ-साथ सद्-धर्म का।।
कारण मिलन का और विच्छेद का,
श्रम का और स्वेद का।
साथ-साथ चलता है क्रम सब कुछ,
प्रकृति के हर संवेद का।।
निराला रिश्ता है जगत में,
तम का और ज्योति का।
दोनों चलते साथ-साथ,
रिश्ता जैसे धागे का मोती का।।
जीवन के हर भेष में,
प्रकृति के आवेश में।
द्वंद्व चलता है साथ-साथ,
संयोजन में और अवशेष में।।
साथ-साथ का नाता ऐसा,
समझो जैसे ब्रह्म का और शक्ति का।
आराध्य के सम्मुख जैसे,
प्रगटते हुए भावों का और भक्ति का।।
साथ-साथ का आलंबन ऐसा,
प्रकृति की हर तन्मात्रा में समाया है।
द्वंद रूप ही जगत सना है,
क्या जाने क्या प्राण हैं क्या काया है।।
हम तो खिलौने हैं जीव मात्र में,
साक्षी रूप परमात्मा के प्रगटन के।
फल का भक्षण करता वह शुक,
माया छलती साथ-साथ जीवन विघटन के।।
ऐसा अजब अनोखा संसार,
तूने कितना भरमाया हे जगदाधार।
जगती में निराकार ही साकार है तो,
जीवन को क्यों उलझाते हो करतार।।
स्वरचित मौलिक रचना
प्रो. रवींद्र सोनवाने ‘रजकण’
बालाघाट (मध्य प्रदेश)