आज यह हालत मेरी
क्या थी, क्या हो गई है, आज यह हालत मेरी।
मैं थी कभी आँखों का तारा, खबर नहीं आज मेरी।।
क्या थी, क्या हो गई है——————–।।
मेरे आँचल के तले, पाई है छाँव सभी ने।
बोलना सीखा मुझसे, पाई है शान सभी ने।।
हो गई मैं सूखी डाली, मुरझा गई कलियां मेरी।
क्या थी, क्या हो गई है——————-।।
मुझको रखा यहाँ हमेशा, जैसे दासी हूँ मैं यहाँ।
मन में नहीं मेरी जगह, मैली मिट्टी हूँ मैं यहाँ।।
किससे कहूँ मैं दर्द अपना, सुनता नहीं कोई बात मेरी।
क्या थी, क्या हो गई है——————–।।
झूठी महफ़िल यह सजी है, आशा नहीं कुछ इससे।
पूछेगा नहीं कल को कोई, दर्द यहाँ मेरा मुझसे।।
हो गई मैं तो पराई, जरूरत नहीं अब यहाँ मेरी।
क्या थी, क्या हो गई है———————।।
शर्म नहीं आती किसी को, देखकर मेरी हिन्दी।
औरों को क्यों दोष दूँ , बेची अपनों ने मेरी बिन्दी।।
रह गई मैं मात्र दिखावा, कुछ नहीं अब कीमत मेरी।
क्या थी, क्या हो गई है———————–।।
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला-बारां(राजस्थान)