पहचान की तलाश
!!पहचान की तलाश!!
रेलवे स्टेशन की भीड़ में एक चेहरा रोज नजर आता था। चमकदार कपड़े सुंदर नाजुक काया लेकिन आंखों में अनकही वेदना, उसका नाम “राहुल” था। जब उसका जन्म हुआ। परिवार में अपार खुशियां थी जैसे-जैसे वह बड़ा हुआ उसकी पहचान उसके हाव भाव सब एक लड़के की पहचान वह समाज से अलग दिए हुए थे।
राहुल के पिताजी उसे देखते ही गुस्सा हो जाते थे उसको जो एक पिता का प्यार मिलना था वह नहीं दे पाते थे। बार-बार उसे कटु शब्दों से कोसते थे । एक दिन उसे छोटे से बालक को माता के मंदिर में मनौती मांगते हुए छोड़ आए। और कहा कि आज से हमारे लिए मर गया। राहुल बहुत छोटा था। रोते रोते वह वापस घर आ गया।
पिता का गुस्सा बढ़ते ही जा रहा था। राहुल आप समझदार होने लगा। एक दिन उसके पिता ने गुस्से में आकर राहुल का हाथ पकड़ा और दरवाजे से बाहर निकाल कर दरवाजा लगा दिया और कहा कि अब इस घर में तेरी जगह नहीं है तू हमारे से बिल्कुल अलग है इस दुनिया से तू कहीं भी चले जा लेकिन लौट कर मेरे घर मत आना।
राहुल अब समझदार हो गया था उसे दिन पिता की नाराजगी उसके दिल में लग गई और वहां घर से चला गया। और दोबारा वापस नहीं आने आने की कसम खाई।
राहुल जब भी अपना चेहरा दर्पण में देखा है उसे वह मंजर याद आता जब पिता ने उसके गालों पर थप्पड़ लगाए थे ,उसकी गूंज आज भी उसके कानों में सुनाई देती है ,और वह डर जाता है।
राहुल अपनी पहचान लेकर किन्नर की गुरु माता के पास चल गया। वहां जाकर उसने सारा वाक्यांश सुनाया। राहुल के आंखों में आंसू देख कर गुरु माता ने बिना किसी हिचक के राहुल को गले लगा लिया। राहुल मन ही मन सोचने लगा जीन माता-पिता ने मुझे जन्म दिया उन्हें कभी मुझे ऐसे गले नहीं लगाया और आंखें आंसू से भर आई। गुरु माता ने राहुल के सिर पर हाथ रख और बोली आज से मेरा बेटा रोशन हो गया।
राहुल का नाम बदलकर रोशन पड़ गया। आप उसकी एक नई पहचान हो गई। राहुल ने गुरु माता के चरण छुए और कहा आप मेरी मां हो मैं जीवन पर्यंत आपकी सेवा करूंगा ऐसा वादा राहुल ने गुरु माता से किया।
अब रोशन अपने परिवार और स्वयं के लिए ट्रेनों में ताली बजाना सिक्के बटोरना का काम करने लगा। रोशन की पतली कमर और सुंदर आंखें सबका मनमोहन लेती थी।
कई बार रोशन मायूस होकर खुद से पूछता~क्या मेरी भी इस दुनिया में कोई जगह है _?
एक सुबह रोशन अपने काम से जा रहा था तभी एक छोटी बच्ची तीन से चार वर्ष की उससे मिला वह अपने माता-पिता से बिछुड़ गई थी। रोशन ने उसका नाम पूछा चुप किया उसे दूध बिस्किट चिप्स खिलाएं। रोशन को कुछ समझ नहीं आ रहा था। रोशन को अपने बचपन की कहानी याद आ गई। रोशन उसे बच्ची को लेकर शहर की हर गलियों में घूमता रहा। लगभग 6 से 7 दिन बाद बच्ची के माता-पिता मिले उसने बच्ची उन्हें सौंप दी माता-पिता ने बच्ची को गले लगाया ,और रोशन को न जाने कितनी दुआएं दी तुम हमारे लिए भगवान हो। उसे बच्ची के माता-पिता का रो-रो कर बुरा हाल था। रोशन को अपने माता-पिता की याद आ गई की ये है बच्ची के माता-पिता हैं ,और एक मेरे पिता जिन्होंने मुझे घर से बाहर निकाल दिया। उसे बच्ची के पिता ने रोशन को गले लगाया। रोशन को लगा कि आज किसी ने मुझे बिना शर्त के गले लगाया उसे बहुत खुशी मिली।
रोशन के मन में एक विचार आया और उसने संकल्प लिया कि आप रोशन गली-गली समझ में ट्रेन में नहीं नाचेगा ना ताली पिटेगा ना भीख मांगेगा। आप वहां ऐसे बच्चों के लिए काम करेगा जिनमें माता-पिता उन्हें छोड़ कर चले जाते हैं या किसी मजबूरी बस वह सड़कों पर पड़े रहते है। रोशन जिस समाज से आया था उसे समाज के बच्चे जो थर्ड जेंडर कहे जाते थे उनकी पढ़ाई के लिए भी काम करने लगा। रोशन ने समाज में उन्हें हक दिलाने के लिए संघर्ष करने लगा।
रोशन उन पर बेसहारा बच्चों या भीख मांगने वाले बच्चों का सहारा बना। रोशन की इस काम को देखकर बहुत सारे लोगों ने उसकी मदद करनी चाहिए। रोशन को भी समय-समय पर काम मिलने लगा और उसने अपना स्वयं का एक एनजीओ चलाया और उसका नाम “पहचान की तलाश “रखा। रोशन के पुण्य कार्य से गुरु माता बहुत खुश हुई। इस तरह रोशन की हिम्मत और आत्मविश्वास ने रोशन को एक नई उपलब्धि प्रदान की।रोशन ने समाज में ऐसे बालक जिन्हें माता-पिता बेसहारा, मंदिर, जंगल, या ट्रेन में छोड़ जाते थे उनका मसीहा बना और सभी को एक समाज में नई पहचान दी।
इस कहानी से यह आशय है कि अपनी हिम्मत और आत्मविश्वास संघर्ष से रोशन जैसे लोगों ने समाज में चेतना उत्पन्न की,तथा जिस समाज से हम घृणा करते थे। उन्हें एक नई पहचान व नाम दिया।
डॉ मनोरमा चौहान
(मध्य प्रदेश)
हरदा