17) दिल घबराता है सोच-सोच, क्यों युद्ध धरा पर होते हैं (राधेश्य
दिल घबराता है सोच-सोच, क्यों युद्ध धरा पर होते हैं (राधेश्यामी छंद)
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1)
दिल घबराता है सोच-सोच, क्यों युद्ध धरा पर होते हैं।
क्यों उड़ते हैं युद्धक-विमान, क्यों बम धरती पर बोते हैं।।
2)
यह चारों ओर तबाही क्यों, जन रोते और बिलखते हैं।
क्यों निरपराध इन युद्धों के, भीषण विनाश को चखते हैं।।
3)
क्यों धरा रक्त की प्यासी है, क्यों शत्रु-भावना आई है।
क्यों मानव से ही मानव की, डर रही आज परछाई है।।
4)
यह अहंकार से भरे बोल, जो बैर-भाव उपजाते हैं।
किसने कर दी यह कटु वाणी, जिसके फल निर्मम आते हैं।।
5)
यह लोगों का सहमे-सहमे, दिन-रात बिताना तो देखो।
हर क्षण मॅंडराती मौत जहॉं, उस जगह ठिकाना तो देखो।।
6)
यह नभ में युद्ध-विमानों की, भरती उड़ान डर लाती है।
बम यह चाहे जिस पर बरसें, पर घोर तबाही आती है।।
7)
बम बने अरे! जिन पैसों से, कितनी थाली भोजन आते।
कितने हम खेल-खिलौने ला, बच्चों के मन को हर्षाते।।
8)
युद्धक-विमान में जो पैसा, बर्बाद हो रहा पाया है।
कितनों को शिक्षा से वंचित, करके इसने भटकाया है।।
9)
यह कैसी विकृति मानव के, मन के भीतर अब छाई है।
हर तरफ हाथ में बम-गोले, बंदूक नजर बस आई है।।
10)
रोको रोको! वीभत्स दृश्य, इन युद्धों को बढ़कर रोको।
जो लड़ने को आतुर तत्पर, कोई तो इन सबको टोको।।
11)
कब युद्ध समस्या के हल हैं, यह हल कैसे दे पाऍंगे।
यह स्वयं रक्त में डूबे हैं, यह अस्पताल खुद आऍंगे।।
12)
यह युद्ध रहे यदि जारी तो, सभ्यता नष्ट हो जाएगी।
जितना विकास-खुशहाली है, केवल अतीत कहलाएगी।।
13)
लाशों के बोझ उठाने को, कोई भी शेष रहेगा क्या।
अंतिम प्रहार जब भी होगा, कोई जयघोष कहेगा क्या।।
14)
इन युद्धों से बचना सीखो, अब युद्ध-विराम जरूरी है।
परमाणु बमों की दौड़ बुरी, इन पर अंकुश मजबूरी है।।
15)
कब तक परमाणु बमों को हम, निर्मित कर रख कर पालेंगे।
प्रण करें युद्ध के खतरों को, हम मानववादी टालेंगे।।
16)
फिर भॉंति-भॉंति के फूल खिलें, कुछ पौधे कुछ हरियाली हो।
सब निश्छल मस्ती में डूबें, इस धरती पर खुशहाली हो।।
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रचयिता: रवि प्रकाश