मातृभूमि की पुकार
खत लिखता हूं तुझको फिर नजाने कैसे मिल पाऊंगा,
माँ….
मैं तेरा बेटा हूं और तेरा ही बेटा कहलाऊंगा ।
तेरे हाथों का खाना तेरे ही हाथों से खाने आऊंगा ,
तू खयाल रखना माँ अपना , मैं जल्दी लौटकर आऊंगा।
मेरी बहनों का सिंदूर मिटाया ,
मैं वो पूरा देश मिटाकर आऊंगा ।
तेरा लाल हु माँ और तेरा ही लाल कह लाऊंगा ,
बात देश की आएगी तो मैं कफ़न में लिपटा हुआ आऊंगा।
तेरी आँखों का तारा हूं और तेरा ही लाल कह लाऊंगा,
रोना मत मां क्योंकि अब मैं जंग जीतकर आऊंगा।
तेरे दूध का कर्ज तो मैं नहीं चुका पाऊंगा ,
पर वादा करता हूं मैं माँ ,
मैं अपनी बहनों को इंसाफ जरूर दिलाकर आऊंगा ।
पापा से कहना मिठाई न खाए ज्यादा अब बार बार डांट लगाने मैं नहीं आऊंगा ,
छोटी से कहना संभाले खुदको मैं अब शायद उसकी शादी देख नहीं पाऊंगा।
मैं वीर जवान हूं,
मैं जरूर वीरता का तिरंगा लहलाकर आऊंगा ।
मैं अपनी भारत माँ के लिए ,
खून की नदियां बहाकर आऊंगा।
कश्मीर मांगा था ,
मैं उनसे अब उनका पाकिस्तान छीनकर आऊंगा।
तुझे देखने का मन है माँ,
पर शायद मैं तुझे देख नहीं पाऊंगा।
तू रोना नहीं माँ, न तो मैं जंग कैसे लड़ पाऊंगा ।
इस देश को मेरी ज़रूरत है माँ ,
तेरा लाल जरूर हूं माँ, पर पहले इस देश का वीर जवान कहलाऊंगा।
-Prachi verma