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24 Jun 2025 · 2 min read

*लेख:- "राधा-कृष्ण : आत्मिक प्रेम का प्रतीक, न कि सांसारिक संबंधों का बहाना"*

“राधा-कृष्ण : आत्मिक प्रेम का प्रतीक, न कि सांसारिक संबंधों का बहाना”

आज के समाज में कुछ लोग राधा-कृष्ण के प्रेम संबंध को आधार बनाकर यह तर्क देने लगते हैं कि यदि विवाहेतर प्रेम कृष्ण के लिए पवित्र था, तो आज भी यह स्वीकार्य होना चाहिए। यह सोच न केवल धार्मिक अज्ञानता का प्रतीक है, बल्कि आध्यात्मिक मूल्यों का अपमान भी है।

राधा और कृष्ण का प्रेम मानव जीवन की उच्चतम आध्यात्मिक चेतना का प्रतीक है , न कि सांसारिक कामनाओं या इच्छाओं का औचित्य।

राधा-कृष्ण : प्रेम या पतन?

जो प्रेम स्वार्थ, वासना और छल पर आधारित हो, वह प्रेम नहीं, पतन होता है। राधा-कृष्ण का प्रेम तो निष्काम भक्ति का वह स्वरूप है जिसमें:
न अधिकार है, न मांग है, न अपेक्षा है, केवल पूर्ण समर्पण और परम प्रेम है।
क्या आज के प्रेम संबंध ऐसे होते हैं?

भक्तिपथ पर राधा : केवल प्रेमिका नहीं, आत्मा की प्रतीक

राधा कोई साधारण स्त्री नहीं, वे उस आत्मा का प्रतीक हैं जो परमात्मा (कृष्ण) के प्रेम में पूर्णतः लीन हो गई है। उनका प्रेम देह से नहीं, चेतना से जुड़ा है।

राधा कृष्ण का प्रेम शाश्वत है, आत्मिक है, शुद्ध है। वह प्रेम जिसे पाने के लिए भक्तों ने तप किया, कवियों ने गीत रचे, और संतों ने जीवन अर्पित कर दिया।

आधुनिक विकृति : विवाहेतर संबंधों का औचित्य क्यों नहीं बन सकता यह प्रेम?

कुछ लोग कहते हैं , “राधा-कृष्ण भी तो विवाह में नहीं थे, फिर भी प्रेम पवित्र था।”

यह तर्क वैसे ही है जैसे कोई कहे , “सीता को अग्निपरीक्षा देनी पड़ी, राजा राम ने उन्हें जंगल में भेज दिया, तो आज की स्त्रियों के साथ भी वैसा ही होना चाहिए।” ये तर्क नहीं कुतर्क है।

किसी आध्यात्मिक प्रतीक को सांसारिक औचित्य के लिए उपयोग करना, धर्म और दर्शन दोनों का अपमान है।

सच्चाई यह है कि राधा-कृष्ण का प्रेम कोई सामाजिक व्यवहार नहीं था, वह तो चेतना का उत्सव था।

शास्त्र और संतों की दृष्टि से:
जयदेव, सूरदास, मीराबाई, चैतन्य महाप्रभु जैसे संतों ने राधा-कृष्ण के प्रेम को भक्ति और आत्म-समर्पण का मार्ग बताया।

ब्रह्मवैवर्त पुराण में राधा-कृष्ण के गंधर्व विवाह का वर्णन है, जो आत्माओं का मिलन दर्शाता है।

कृष्ण जब द्वारका में थे, तो वे एक राजा, एक पति, एक नीति के रक्षक थे। उन्होंने कभी भी धर्म की सीमाओं का उल्लंघन नहीं किया। क्या हमें यह सबक नहीं लेना चाहिए?

राधा-कृष्ण का प्रेम हमें सिखाता है:

1. प्रेम वासना नहीं, भक्ति है।
2. प्रेम अधिकार नहीं, समर्पण है।
3. प्रेम अवसर नहीं, तपस्या है।
4. प्रेम निजी सुख नहीं, परम सत्य की अनुभूति है।
जो लोग अपने विवाहेतर या अनैतिक संबंधों को राधा-कृष्ण के प्रेम की आड़ में छिपाना चाहते हैं, वे न केवल धर्म और संस्कृति को नीचा दिखाते हैं, बल्कि अपने अपराध को पवित्रता का मुखौटा पहनाने का दुस्साहस करते हैं।
राधा-कृष्ण का प्रेम एक दीप है जो आत्मा को आलोकित करता है, उसे कामना की अग्नि में जलाना, अंधकार को ज्ञान बताना होगा।
©® डा० निधि श्रीवास्तव “सरोद”

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