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21 Jun 2025 · 1 min read

मुक्तक

प्रकृति चंचल सुहानी शान्त बैठी थी कहानी में।
हुई जब गगन से बरखा,मची भगदड़ किसानी में।
कभी जब झूम कर गाये धरा अपनी रवानी में।
तभी हो सृष्टि में हलचल लगे जब आग पानी मे।
मनोरमा जैन पाखी

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