इतनी-सी भी बात आजकल, कहाँ समझ में आती है।
इतनी-सी भी बात आजकल, कहाँ समझ में आती है।
अपनी उच्छ्रंखलता ही तो, अपना नाश कराती है।
अंदर घुसकर घात करे यह, रावण की सामर्थ्य कहाँ।
स्वयं शक्ति भी मर्यादा तज, बंधन में पड़ जाती है।
अंकित शर्मा ‘इषुप्रिय’