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20 Sep 2024 · 5 min read

*रामपुर रियासत का प्राचीन इतिहास*

रामपुर रियासत का प्राचीन इतिहास
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समीक्षा पुस्तक: मुरादाबाद मंडलीय गजेटियर (भाग 1) प्रकाशन वर्ष: 2023
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वर्ष 2023 में प्रकाशित मुरादाबाद मंडलीय गजेटियर (भाग 1) में रामपुर के प्राचीन इतिहास की जांच-पड़ताल बहुत गंभीरता से की गई है। अनेक अछूते तथ्य गजेटियर के माध्यम से प्रकाश में आए हैं।

यह विचार तो बहुतों के मन में आया होगा कि रामपुर का इतिहास क्या केवल 1774 ईसवी में नवाब फैजुल्ला खान द्वारा रामपुर रियासत की शुरुआत करने से ही शुरू होता है अथवा यह सैकड़ों-हजारों वर्षों पूर्व के इतिहास से भी क्या कोई संबंध रखता है ? उत्तर सकारात्मक है।

वास्तव में रामपुर जनपद अथवा कहिए कि रियासत का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है। इसकी शुरुआत वैदिक काल से होती है और उस समय भी रामपुर बसा हुआ था। केवल इतना ही नहीं जब राजा भरत ने भारत पर शासन किया और हस्तिनापुर को अपनी राजधानी बनाया, रामपुर इसमें शामिल था।
राजा भरत के ही वंशजों ने बाद में रामपुर जनपद में अपना साम्राज्य स्थापित किया तथा अपनी राजधानी को शाहबाद के निकट सैफनी क्षेत्र को बनाया। उस समय सैफनी का तात्पर्य सहस्त्र-फण से था ।यह विशाल किला था, जिसके एक हजार द्वार होने के कारण उसे सहस्त्र-फनी तथा बाद में सैफनी कहा जाने लगा। महाभारत का प्रमुख पात्र भूरिश्रवा सैफनी के इसी किले का स्वामी था। जब भूरिश्रवा युद्ध में मारा गया, तब दुर्योधन की पत्नी ने शाहबाद के निकट भीतर गॉंव नाम के स्थान पर अपना पड़ाव डाला था और वह भूरिश्रवा की पत्नी से दुख प्रकट करने आई थी। शाहबाद का पुराना नाम लखनौर था। भूरिश्रवा के पास ही हीरा ‘कोहिनूर’ था, जो बाद में विश्व प्रसिद्ध हुआ। भूरिश्रवा महाभारत का महायोद्धा था। भगवद् गीता के पहले अध्याय के आठवें श्लोक में भूरिश्रवा को सोमदत्त का पुत्र कहकर वर्णन मिलता है।

एक मान्यता के अनुसार 1150 ईसवी के आसपास लखनौर की स्थापना राजा लखनपाल ने की थी। उसने वहॉं पर एक किले का निर्माण भी कराया था।

मुरादाबाद मंडल गजेटियर (भाग 1) में इस बात को महसूस किया गया है कि रामपुर जनपद में दो सौ वर्षों के नवाबी शासन के दौरान ज्यादातर प्राचीन स्मारक और चिन्ह नष्ट हो गए। अब प्रश्न यह है कि उनकी खोज कैसे की जाए ? जब प्रमाणिक साक्ष्य उपलब्ध नहीं हैं, पुरातत्व के तथ्य भी नहीं हैं, तब बात कैसे बने ?

गजेटियर के अनुसार यह तो माना जाता है कि ग्राम भमरौआ, भीतरगॉंव और सैफनी महाभारत काल के हैं, लेकिन पूरी तरह सिद्ध नहीं हो सकते।

इतना जरूर है कि अभी भी बहुत से गॉंवों के साथ खेड़ा शब्द जुड़ा हुआ है । वह नहीं बदला। खेड़ा शब्द इस बात को प्रकट करता है कि यह प्राचीन स्थल है। रामपुर जनपद के ऐसे बहुत से गांव हैं जिसके अंत में खेड़ा शब्द है। उदाहरणार्थ ऐंजनखेड़ा, बरखेड़ा, इसाखेड़ा, करखेड़ा, नरखेड़ा आदि।

गजेटियर ने इस बात का पता लगाया है कि प्राचीनता को सिद्ध करने वाले कुछ गांवों में सती समाधि और पुराने कुएं हैं। एक प्राचीन टैंक पक्के तटबंध का सैंथाखेड़ा गांव में है। यह प्राचीनता को दर्शाता है। किलानुमा संरचना जो अधिकांशत: गीली मिट्टी से बनी होती है और जिसे गढ़ी कहते हैं; उसके अवशेष और चिन्ह अजीतपुर, अकबराबाद, भीतरगांव, बिलासपुर, केमरी, सैफनी, सैंथाखेड़ा, शाहबाद आदि स्थानों पर पाए जाते हैं। यह दसवीं या ग्यारहवीं शताब्दी के हैं।

जनश्रुतियों के अनुसार गजेटियर का कहना है कि जनपद रामपुर में बहुत से स्थानों का संबंध 12वीं शताब्दी से जुड़ता है। इसी समय कठेरिया राजपूतों ने रामपुर जनपद को अपना निवास बनाया था। उनके केंद्र लखनौर, भीतरगांव, शाहबाद, राजद्वारा, सैफनी, बिलासपुर और मधुकर थे।

‘कहा जाता है’- वाक्यांश का प्रयोग गजेटियर करता है। उसके अनुसार कहा जाता है कि कठेरिया राजा राम सिंह के समय में रामपुर चार गांवों का समूह था। राजा राम सिंह के स्थान पर राजा रामसुख नाम का उल्लेख भी पाया जाता है। यह 1625 ईसवी की घटना है, जब कठेर के शासक राजा रामसुख/राजा रामसिंह को जहांगीर/ शाहजहां के शासनकाल में उनके गवर्नर रुस्तम खान ने चौपला के किले पर धोखे से अधिकार कर लिया और कठेर राजा राम सिंह की हत्या कर दी।

एक अन्य विचार के अनुसार रुस्तम खान ने सैफनी पर हमला किया था। दो साल तक इस पर कब्जा नहीं कर पाया। फिर बाद में उसने राजा रामसिंह की हत्या करने में सफलता प्राप्त की। लखनौर का नाम बदलकर बादशाह के नाम पर उसने शाहबाद कर दिया।
कठेर राजा रामसिंह की हत्या के बाद रुस्तम खान ने जीती हुई जगह का नाम शहजादे मुराद के नाम पर मुरादाबाद रख दिया। चौपला में नए किले का निर्माण कराया।

कठेरिया राजपूत सूर्यवंशी थे। यह अयोध्या से कठेर क्षेत्र में आए थे। मुरादाबाद और उसके आसपास के क्षेत्र की भूमि को उस समय कठेर कहा जाता था।

गजेटियर के अनुसार रामपुर जनपद के कुछ पुराने नामों से स्थिति हमें 12वीं शताब्दी के साथ जोड़ रही है। अहीर राजा अजीत सिंह ने अजीतपुर की स्थापना की। ठाकुर बिलासी सिंह द्वारा बिलासपुर की स्थापना की गई। भीतर गांव के राजा की पुत्री अंकला कुमारी ने गॉंव अनवॉं की स्थापना की थी। इसका मूल नाम अंकलापुरी था। रामगंगा नदी के दक्षिणी तट पर स्थित गांव कूप की स्थापना भीतर गांव के कठेरिया राजा कीरत सिंह ने की थी। केमरी की स्थापना खेम सिंह ने की थी। उसका मूल नाम खेमरी था। धमोरा की स्थापना ठाकुर धर्म सिंह ने की थी। पटवाई और पंजाब नगर भी 12वीं शताब्दी के आसपास ही स्थापित हुए। तहसील टांडा में गांव अकबराबाद हिंदू राजा का मुख्यालय था। इसमें किले और अन्य भग्नावशेष अभी भी देखे जा सकते हैं। उपरोक्त सभी जानकारियां रामपुर के इतिहास को नए सिरे से खॅंगालने की जरूरत पर जोर देती हैं।

शाहबाद का किला जो हम आज देखते हैं, वह पिछली शताब्दी की रचना है। गजेटियर बताता है कि इससे भी पुराना वहॉं एक शिव मंदिर है। इसके बारे में यह कहा जाता है कि नवाब साहब अपने बनाए हुए किले को मंदिर तक ले जाना चाहते थे। ले भी गए। लेकिन हाथियों का इस्तेमाल करने के बाद भी शिवलिंग अपनी जगह से टस से मस नहीं हुआ। परिणामत: मंदिर की पुनर्स्थापना हुई।

कहने का तात्पर्य यह है कि रामपुर की प्राचीनता नवाबी शासनकाल से पहले से संबंध रखती है। जनश्रुतियॉं, स्थानों के नाम, कतिपय भग्नावशेष इसकी पुष्टि करते हैं। अभी भी यह शोध का विषय है कि ईसवी सन 1774 से पूर्व रामपुर की दिशा और दशा किन विचारों और जीवन पद्धतियों से आच्छादित थी। इतिहास की खोज की दिशा में मुरादाबाद मंडलीय गजेटियर (भाग 1) ने जो उपलब्धि रामपुर जनपद के संबंध में प्रस्तुत की है, उसकी जितनी सराहना की जाए कम है।
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समीक्षक :रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज), रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451

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