सदा शक्ति ने ही जग में, बढ़ते अभिमान झुकाए हैं।
सदा शक्ति ने ही जग में, बढ़ते अभिमान झुकाए हैं।
स्वाभिमान में सिर काटे या , अपने शीश कटाए हैं।
मातृभूमि की प्राचीरों की, गाथा जब गायी जाती।
छाती चौडी़ कर झाँसी के, शौर्य सुनाए जाते हैं।।
अंकित शर्मा ‘इषुप्रिय’